Kolkata : “अज़हर आलम और थिएटर एक दूसरे के पूरक हैं”

 कोलकाता : कलकत्ता के मुस्लिम इंस्टिट्यूट ने अज़हर आलम को समर्पित कार्यक्रम एक शाम अज़हर आलम के नाम हाल ही में प्रोफेसर नियाज़ अहमद ख़ान सभाघर में आयोजित किया। यह कार्यक्रम दो सत्र में हुआ। पहले सत्र में वरिष्ट नाटककार और निर्देशकों ने अज़हर आलम के सफ़र को जानने और उनकी बारकियों को समझने के लिए अपने वक्तव्य पेश किया। दूसरे सत्र में मुंबई के नाट्य दल कलाप्रेमी थिएटर ने नाटक सॉरी नॉट फिट पेश किया, जिसका निर्देशन शाहज़हां ख़ान ने किया। यह नाटक उन्होंने अज़हर आलम को समर्पित किया।

प्रोफेसर नईम अनीस (माननीय सहायक महासचिव, मुस्लिम इंस्टिट्यूट) ने इस कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कहा कि वक्ताओं या यूं कहें अज़हर आलम को अपने भाई कहने वाले, उनके गुरु, साथ ही उनकी जीवनसंगिनी उमा झुनझुनवाला ने जो बातें अज़हर आलम की यादों में कहा, साथ ही उनके कामों को लेकर जो बातें कही, आज एक बार भी पूरा सभागार अज़हर आलम के नाम से गुंज उठा।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर. काज़िम ने अज़हर को याद करते हुए कहा कि मुस्लिम इंस्टिट्यूट  से अज़हर आलम का सफर शुरू हुआ फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से उनके सफ़र को उड़ान मिली। उमा से जुड़ना थिएटर जगत के लिए एक नये तरीके का शुभारंभ हुआ। जहां लिटिल थेस्पियन से उन्होंने अपना पहला ड्रामा” ब्लैक संडे”  किया । बंगाल की जमीन से उर्दू पत्रिका “रंगरस” से अज़हर आलम ने उर्दू नाटक को एक विश्व पहचान दिलाई है। उन्होंने कहा कि एक शाम अज़हर आलम के नाम नहीं, पर हम थिएटर वाले के लिए हर शाम अज़हर आलम के नाम है। अज़हर ने थिएटर सिर्फ अपने ग्रुप के लिए नहीं किया, उन्होंने हर जगह से सिखा और आज थिएटर को मेंन स्ट्रीम में लाया । जुनून ही अज़हर आलम है।  ड्रामा हिंदी-उर्दू में नहीं होती, समाज की भावनाएं ही रंगमंच पर नज़र आते हैं।

कोलकाता के हरी मोहन कॉलेज के प्रोफेसर. शेख अलमास हुसैन ने कहा कि अजहर भाई का जाना सच में हमारे लिए बहुत बडा नुकसान है। हमारे बीच हजारों बार बात होती थी, लेकिन हमारे बीच सिर्फ थिएटर को लेकर बातें होती थी, उर्दू ड्रामा का विकास, उनका बीज कैसे हो, वह कहां तक आम लोगों से जुड़ती है। उर्दू थिएटर को मेन स्टीम में लाने का काम अज़हर आलम ही कर सकते हैं। स्टूडियो थिएटर बनने का उनका सपना था।

कलकत्ता की विख्यात रंगकर्मी और अज़हर आलम कि जीवन संगिनी उमा झुनझुनवाला ने कहा कि अज़हर तुम कहीं नहीं गए, तुम हर किसी के ज़ुबान पर हो। थिएटर करते-करते पता ही नहीं चला कि हम कब जुड़ गए। समाज हमें बहुत कुछ देता है ,तो हमारा भी फ़र्ज़ था कि हम भी  आगे आने वाली पीढ़ी को सकारात्मक ऊर्जा दे थिएटर के जरिए। १९९४ में लिटिल थेस्पियन की स्थापना की हमने। कलकत्ता में उर्दू और हिंदी नाट्य संस्था एक भी नहीं है कितनी बड़ी संकट की बात है आने वाले नस्लों के लिए जो थिएटर पर काम करना चाहेंगे।  एक सबसे बड़ी बात है कि ड्रामा पढ़ाया नहीं जाता, उसे सीखया जाता है ,तो हमे फल की कामना भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि हमने बीज बोया ही नहीं है।

श्री कमाल अहमद नाटककार एवेम निर्देशक ने भावुक हो कर कहा कि उनकी कमी बहुत खल रहीं हैं,  वो अभी जब भी साथ होते थे, तो सब कुछ और ही लगता आज, उनके कामों को गंभीरता से लेने की जरूरत है और अपना साथ देने का समय है अभी।

कोलकाता के विख्यात नाटककार और अज़हर आलम के अध्यापक ज़हीर अनवर ने इस मौके पर कहा  कि हमारी जिंदगी लम्बी थी पर अज़हर आलम की जिंदगी बड़ी है। जिन्होंने काम किया है उनका काम बोलता है, इसलिए आज अज़हर आलम यही हमारे बीच है और रहेंगे, अब उसकी धरोहर को हमें संभालना है। मुझे अपने विद्यार्थी पर गर्व है।

इस अवसर पर प्रोफेसर. काज़िम को प्रोफेसर नियाज़ अहमद ख़ान अवार्ड और रानीगंज के विख्यात रंगकर्मी श्री क़मर जावेद को अज़हर आलम अवार्ड से सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर मोजूद थे श्री निसार अहमद (माननीय महासचिव, मुस्लिम इंस्टिट्यूट), श्री कमरुद्दीन मलिक (नाटक और संगीत उप-समिति, मुस्लिम इंस्टिट्यूट), श्री साजिद परवेज़ (नाटक और संगीत उप-समिति, मुस्लिम इंस्टिट्यूट)।

हमारी आने वाली पीढ़ी अज़हर आलम के साथ काम नहीं कर पाएगी, लेकिन अज़हर आलम ने जैसे कामों को किया है उसी राह पर चलते हुए थिएटर प्रेमी आगे बढ़ेंगे और थिएटर को एक मुक़ाम देने की पूरी कोशिश करेंगे।

 

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