देश-दुनिया के इतिहास में 12 सितंबर की तारीख तमाम अहम वजह से दर्ज है। यह तारीख सारागढ़ी युद्ध में सिख सैनिकों के शौर्य और पराक्रम की गवाह है। वाकया 1897 का है। तबका नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस का तिराह इलाका अब पाकिस्तान में है। करीब छह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित इस इलाके में अंग्रेजों के दो किले थे। ये किले गुलिस्तां और लॉक्हार्ट में थे। इन किलों के बीच में सारागढ़ी चौकी थी। यह पठानों का इलाका था।

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अपने इलाके में अंग्रेजों की घुसपैठ स्थानीय पठानों को पसंद नहीं आई। वे इन किलों से अंग्रेजों को भगाने के लिए हमले करने लगे। अंग्रेजों ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉटन के नेतृत्व में 36 सिख रेजीमेंट की पांच कंपनियों को इस इलाके में तैनात किया। सारागढ़ी की कमांड हवलदार ईशर सिंह और 20 दूसरे जवानों (सभी सिख) के जिम्मे थी। 12 सितंबर 1897 को करीब 14 हजार पठानों ने दोबारा सारागढ़ी पर हमला किया। इन हजारों पठानों से निपटने के लिए चौकी में 21 सिख जवान मौजूद थे। हजारों की तादाद में पठानों को देखकर सैनिकों ने इसकी सूचना कर्नल हॉटन को दी। हॉटन उस समय लॉक्हार्ट के किले में था। उन्होंने कहा कि वे इतने कम समय में कोई मदद नहीं पहुंचा पाएंगे। आखिर में 21 सिख सैनिकों को अकेले ही हजारों पठानों से लोहा लेना पड़ा। पूरा इलाका-‘बोले सो निहाल, सतश्री अकाल’ के नारे से गूंज उठा। इन 21 सैनिकों ने दो बार पठानों को पीछे खिसकने पर मजबूर कर दिया। पठान किले के भीतर घुसने में कामयाब नहीं हो पाए। आखिर में उन्होंने फैसला लिया कि किले की दीवार को तोड़कर अंदर घुसा जाएगा। सिखों के पास गोलियां खत्म हो गईं तो उन्होंने अपनी राइफलों में लगे संगीन से हमला करना शुरू कर दिया।

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छह घंटे तक चले युद्ध में 21 सैनिकों ने 600 से ज्यादा पठानों को मार गिराया। हालांकि किले पर पठानों ने कब्जा कर लिया, लेकिन एक दिन बाद ही अंग्रेजों ने पठानों से किले को वापस छुड़ा लिया। 2019 में आई अक्षय कुमार की फिल्म केसरी इसी युद्ध पर आधारित है।

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