नयी दिल्ली : वरिष्ठ संपादक, मातृभाषा हिंदी के प्रबल समर्थक और प्रखर चिंतक डॉ. वेदप्रताप वैदिक का आज (मंगलवार) निधन हो गया। उन्होंने गुरुग्राम (हरियाणा) के सेक्टर-55 स्थित अपने घर पर सुबह अंतिम सांस ली। डॉ. वैदिक के निधन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की है।

Advertisement

संपादक त्रयी प्रभाष जोशी, राजेंद्र माथुर और शरद जोशी की पीढ़ी के आखिरी स्तंभ डॉ. वेदप्रताप वैदिक के सहयोगी मोहन कुमार ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि डॉ. वैदिक वॉशरूम गए थे। करीब 20 मिनट तक बाहर नहीं आए तो आवाज दी गई। कोई प्रतिक्रिया न होने पर दरवाजा तोड़ कर उन्हें बाहर निकाला गया।

30 दिसंबर, 1944 को मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मे डॉ. वैदिक के जीवन पर स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया का प्रभाव रहा। वे अनेक भारतीय और विदेशी शोध संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ रहे। भारतीय विदेश नीति के चिंतन और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। अपने पूरे जीवनकाल में उन्होंने 80 से अधिक देशों की यात्रा की। कुछ दिन पहले डॉ. वैदिक दुबई से लौटे थे।

अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिंदी में बेहतर पत्रकारिता का युग आरंभ करने वालों में डॉ. वैदिक का नाम अग्रणी है। उन्होंने 1958 में पत्रकारीय पारी शुरू की। हिंदी संवाद समिति भाषा के संस्थापक संपादक डॉ. वैदिक सदैव प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। हिंदी और अंग्रेजी के अलावा रूसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा पर उनका समान अधिकार था। उन्होंने अपनी पीएचडी के शोधकार्य के दौरान न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड अफ्रीकन स्टडीज’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. वैदिक भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध ग्रंथ हिंदी में लिखा।

Advertisement

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here