बंगाल में नई नहीं है ‘लाशों पर राजनीति’

सन्तोष कुमार सिंह

कोलकाता के काशीपुर में भाजपा नेता अर्जुन चौरसिया की शुक्रवार को फंदे से लटकती लाश मिलने के बाद से राजनीति गरमा गयी है। आज भले ही तृणमूल कांग्रेस इस घटना को लेकर भाजपा पर ‘लाशों की राजनीति’ करने का आरोप लगा रही है लेकिन बंगाल की धरती पर ‘लाशों की राजनीति’ कोई नई बात नहीं है। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी जब विपक्ष में थीं तो वे हर घटना की सीबीआई जाँच की माँग करती थीं। अपनी पार्टी के कार्यकर्ता की अस्वाभाविक मौत कि मामलों को वे घटनास्थल पर पहुँचते ही हत्या का आरोप लगा देती थीं। सिंगुर में तापसी मालिक की घटना इसमें प्रमुख है। राजनीतिक दलों के नेता जाँच शुरू होने से पहले ही अपने अजेंडा के अनुसार आरोप लगाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने लग जाते हैं।
बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार के अंतिम समय में तृणमूल कांग्रेस ने किसी भी हत्याकांड का राजनीतिक फ़ायदा उठाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। जिलों में कार्यकर्ता या साधारण हत्या या अस्वाभाविक मौत की घटना के बाद उसकी लाश कोलकाता लाने के लिए पार्टी के कुछ नेताओं को विशेष ज़िम्मेवारी मिली थी। बर्दवान रेंज के जिलों की ज़िम्मेवारी मदन मित्रा पर थी जबकि जंगलमहल से शवों को लाने की ज़िम्मेवारी मुख्य रूप से मुकुल रॉय की थी। शवों को धर्मतल्ला के डोरिना क्रॉसिंग पर रखकर भाषण दिया जाता था, भाषण देने वालों में ममता बनर्जी और मुकुल रॉय प्रमुख होते थे।
बंगाल के दौरे पर आए अमित शाह ने भी अर्जुन चौरसिया का फंदे से लटकता शव मिलने की घटना से पार्टी कार्यकर्ताओं में प्रसारित हो रहे रोष को भाँप लिया और घटनास्थल पर पहुँचने का सही राजनीतिक निर्णय लिया। एक कार्यकर्ता की हत्या होने के बाद देश के गृह मंत्री के चंद घंटे में ही घटनास्थल पर पहुँच जाना एक ऐतिहासिक घटना है।

पश्चिम बंगाल के लोगों को राजनैतिक रूप से बहुत जागरूक माना जाता है। देश भर के लोगों में बंगाल के निवासियों के बारे में ऐसी धारणा रहती है। लेकिन इसके साथ ही यह भी एक कटु सत्य है कि बूथ कैप्चरिंग, धाँधली, बोगस वोटिंग, धमकी और राजनीतिक हिंसा के लिए बंगाल कुख्यात है। एक जमाना था कि चुनावी हिंसा के लिए बिहार देश भर में बदनाम था, चुनाव में दर्जनों लोगों की जान चली जाती थी लेकिन समय बीतने के साथ बिहार के माथे से वह कलंक हट गया। एक तरफ बंगाल के लोगों का राजनीतिक तौर पर सचेतन होना और दूसरी तरफ गलत हथकण्डे अपनाकर मताधिकार छीन लेना, एक दूसरे के विरोधाभासी हैं।

बंगाल के दौरे पर आए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दो दिवसीय दौरे के दूसरे दिन सुबह कोलकाता के काशीपुर इलाके से भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता अर्जुन चौरसिया का फंदे से लटकता शव बरामद किया गया। चूँकि अमित शाह शुक्रवार को ही उत्तर बंगाल से कोलकाता लौटने वाले थे इसलिए कार्यकर्ताओं में ख़ासा उत्साह था। सुबह से ही कोलकाता के विभिन्न हिस्सों से युवा कार्यकर्ता अमित शाह के स्वागत की तैयारियों में जुटे थे, इसी बीच अर्जुन चौरसिया का शव मिलने की खबर जंगल की आग की तरह फैल गयी। भाजपा कार्यकर्ताओं ने तृणमूल कांग्रेस कर्मियों पर अर्जुन चौरसिया की हत्या करने का आरोप लगाते हुए हंगामा शुरू कर दिया। खबर पाकर पहुँची पुलिस के साथ जमकर धक्का-मुक्की हुई।
चूँकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के एक साल बाद यह पहला मौका था जब अमित शाह प्रदेश भाजपा की खोज-खबर लेने आये थे।
पिछले साल जब ‘अबकी बार, 200 पार’ का नारा देने वाले पार्टी कार्यकर्ता तृणमूल के कर्मियों के निशाने पर आ गए थे। चुनाव बाद हुई हिंसा से भाजपा कार्यकर्ताओं को घर-परिवार छोड़कर अन्यत्र शरण लेनी पड़ी। पार्टी की नेत्री वकील प्रियंका टिबड़ेवाल ने कानूनी लड़ाई लड़ी और हाई कोर्ट के निर्देश पर प्रशासन बेघर भाजपा कर्मियों को उनके घर लौटाने को मजबूर हुआ। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने बंगाल का दौरा कर हिंसा के शिकार हुए कुछ परिवारों के घर पहुंचकर उनकी खबर ली थी लेकिन नड्डा की छवि एक सॉफ्ट पॉलिटिशियन की रही है। कार्यकर्ताओं पर चुनावी हिंसा के मुकाबले के लिए पार्टी जमीनी स्तर पर लड़ाई लड़ने के बजाय कोर्ट-कचहरी में ही व्यस्त रही।

अमित शाह को एक स्ट्रांग पॉलिटिशियन माना जाता है। अर्जुन चौरसिया के परिजनों से मिलने के बाद उन्होंने कहा कि पार्टी अपने कार्यकर्ता के साथ चट्टान की तरह खड़ी रहेगी। उन्होंने एक राजनीतिज्ञ की तरह अर्जुन चौरसिया की अस्वाभाविक मौत को बिना जांच के ही हत्या करार दे दी। उन्होंने ममता बनर्जी की सरकार पर निशाना साधा और घटना को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा रिपोर्ट तलब किये जाने की भी बात कही।

शाह की सलाह

सबको उम्मीद थी कि शाह प्रदेश भाजपा नेताओं को ऐसा मंत्र देंगे कि सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने की आस लगाए प्रदेश भाजपा के नेताओं को शाह ने स्पष्ट कर दिया कि भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आयी सरकार को ऐसे नहीं हटाया जा सकता। शाह ने प्रदेश नेताओं को तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के राजनीतिक संघर्ष से सीख लेकर आन्दोलन जारी रखने की सलाह दी।
शुक्रवार को एक तरफ़ अर्जुन चौरसिया की घटना की खबर पाकर एयरपोर्ट से सीधे घटनास्थल पर पहुँचने और स्वागत कार्यक्रमों को रद्द करने के लिए शाह की दिन भर तारीफ़ होती रही लेकिन शाम को उनके बीसीसीआई अध्यक्ष सौरभ गांगुली के घर निमन्त्रण पर पहुँचने के बाद डिनर टेबल की तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में ख़ासी नाराज़गी भी देखी गयी। अब देखना है कि प्रदेश भाजपा के नेता शाह की सलाह पर कितना अमल करते हैं और उसका नतीजा क्या निकलता है।

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