राजनीति में लंबी छलांग के लिए दो कदम पीछे हटना पड़ता है : असीम घोष

कोलकाता : केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणा के बाद से देश भर में प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है। इस बीच प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और सेवानिवृत्त अध्यापक असीम घोष ने कहा है कि इसे किसी की पराजय के तौर पर नहीं बल्कि बड़े सबक के तौर पर देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीति में लंबी छलांग के लिए दो कदम पीछे हटाने में कोई बुराई नहीं।

ग्रामीण अर्थशास्त्र में अनुभवी असीम ने शुक्रवार को कहा, ”इस कानून का बनना और निरस्त होना दोनों ही बड़ी घटनाएं हैं। परिस्थिगत कारणों से गांधीजी को भी अलग-अलग समय पर दो कदम आगे और दो कदम पीछे हटना पड़ा। इसमें विफलता या हार की तलाश करना वाहियात है।”

तो क्या इस कानून को और सोच-समझकर लागू किया जाना चाहिए था? आंदोलन को दबाने के लिए प्रशासनिक और विभिन्न स्तरों पर बड़े पैमाने पर खर्च करने के आरोप लगते रहे हैं। इस पर असीम ने कहा, “हां। छोटे और मझोले किसानों को जो मुख्य लाभार्थी थे, उन्हें अधिक विश्वास में लिया जाना चाहिए था। हालांकि, अब उन्हें समझ आयेगी कि केंद्र को क्यों पीछे हटना पड़ा।”

क्या आपको अब भी लगता है कि इस कानून से देश के आर्थिक विकास में मदद मिलती? इस पर असीम ने कहा , “बिल्कुल। पचास साल पहले, मैंने मुख्य रूप से अपने भाइयों के लिए रानीहाटी, हावड़ा में बॉम्बे रोड पर एक तेल कारखाना स्थापित किया है। हमारे पास 16 मिलें हैं। मैं विभिन्न राज्य से नियमित रूप से सरसों लाता हूं। इसलिए हमारे पास इस बारे में एक स्पष्ट विचार है। हम कभी भी सीधे किसानों से कच्चा माल नहीं खरीद पाए। पूरे देश में यही स्थिति है। किसान को अपने खेत में फूल गोभी के 12 रुपये मिलते हैं। बाजार में इसे 50 रुपये में बेचा जा रहा है। विपणन बाजार मुख्य रूप से बिचौलियों-दलालों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। बुनियादी ढांचे के विकास के लिये उनके पास दीर्घकालिक निवेश नहीं है। घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बाजार को लंबे समय से चली आ रही इस बिचौलिया सत्ता को खत्म करने की जरूरत है।

उन्होंने आगे कहा, ”पंजाब में मैंने लोगों को सड़क के किनारे या खेत में फसलों को रखते देखा है। क्योंकि उपज रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज नहीं है। पूरे देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है लेकिन निवेश बहुत कम है। इस बुनियादी ढांचे के विकास के लिए बहुत अधिक निजी निवेश की आवश्यकता है।”
घोष ने कहा, ”सरकार कितना करेगी? खाद, बिजली कृषि सब्सिडी में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। विपक्षी नेता आर्थिक स्थिति के बारे में सोचे बिना केंद्र पर ज्यादा देने का दबाव बना रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो भारत को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है!”

अनुभवी राजनेता घोष को लगता है कि कृषि अधिनियम के निरस्त होने से भाजपा को राजनीतिक रूप से भी फायदा होगा। उन्होंने कहा, ”एक जमाने में अकाली दल एनडीए का सहयोगी था। लेकिन उन्होंने भाजपा को पंजाब में फैलने में मदद नहीं की। अब भाजपा का पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह से समझौता हो गया है। उन्होंने कृषि कानून को निरस्त करने की मांग की। केंद्र ने इसे मान्यता दी। इसका निश्चित तौर पर पार्टी को फायदा होगा। कई मतदाता आगामी उत्तर प्रदेश चुनावों में प्रधानमंत्री के इस मानवीय कदम का स्वागत भी करेंगे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राजनीति का मतलब हमेशा अड़े रहना नहीं होता है।”

वहीं रोजगार और विपणन सलाहकार किंग्शुक पल्लब विश्वास ने कहा, “मुझे लगता है कि विधेयक को वापस लेना राजनीति का हिस्सा है। कृषि कानूनों को लेकर मैंने उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा के कुछ युवाओं से से बात की है। सभी इंजीनियरिंग या उच्च शिक्षा में शिक्षित हैं और अपने परिवार के साथ खेती में भी संलग्न हैं। सभी ने एक वाक्य में कहा था कि वे केंद्र के फैसले से खुश हैं। उन्होंने कहा कि किसानों के लिए अच्छा बिल है। इसका विरोध सिर्फ बड़े दलाल कर रहे हैं। लोकतंत्र में राजनीति बहुत बड़ी चीज होती है। सरकार और विपक्षी दलों के दबाव में पीछे हटना राजनीति का हिस्सा है।”

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