प्रेमचंद जयंती पर ‘वर्तमान समय की चुनौतियां एवं प्रेमचंद’ विषय पर परिचर्चा आयोजित

बैरकपुर : उमा फाउंडेशन द्वारा प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में ‘वर्तमान समय की चुनौतियां एवं प्रेमचंद्र’ विषय पर एक नैहाटी नगरपालिका स्थित समरेश बसु सभागार में एक परिचर्चा आयोजित की गयी। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में पश्चिम बंगाल के मंत्री पार्थो भौमिक, प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार भारती, नैहाटी नगरपालिका के चैयरमैन अशोक चटर्जी, पप्पू रजक एवं देवआनंद साव जी रहे। कार्यक्रम में अन्य अतिथि के रूप में पार्थ प्रतिम दासगुप्ता, गौतम चक्रवर्ती भी शामिल थे। परिचर्चा का संचालन कार्तिक साव ने किया। प्रेमचंद की तस्वीर पर अतिथियों सहित डॉक्टर विकास साव (उमा फाउंडेशन के सचिव) ने पुष्प अर्पण किया। डॉ. विक्रम साव ने परिचर्चा का विषय प्रवर्तन किया जिनमें उन्होंने प्रेमचंद के साहित्य में विविध चुनौतियों के साथ-साथ बाल विमर्श एवं स्वास्थ्य विमर्श के विषय पर अत्यधिक महत्वपूर्ण जानकारी दी।

पप्पू रजक ने अपने वक्तव्य में प्रेमचंद जयंती के साथ-साथ आजादी का अमृत महोत्सव के विषय में बताया, साथ ही उन्होंने प्रेमचंद द्वारा रचित ‘जुलूस’ कहानी का अत्यंत रोचक ढंग से पाठ किया।देवआनंद साव ने प्रेमचंद को याद करते हुए उनकी विविध कहानियों पर चर्चा की जिसमें उन्होंने धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा देने का विचार सामने रखा। प्रोफेसर विजय कुमार भारती ने प्रेमचंद और शरतचंद के साहित्य की लोकप्रियता की चर्चा की, साथ ही वर्तमान परिवेश और उसकी चुनौतियों को उजागर किया।

अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने वर्तमान समय में संवाद विषय पर जोर दिया कि तर्क को किस प्रकार कुतर्क बनाया जा रहा है। सामंतवादी मूल्यों का समावेशन किस प्रकार हमारे भीतर उपस्थित है इस विषय पर उन्होंने महत्वपूर्ण जानकारी दी। प्रेमचंद की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए उनकी रचनाओं की आलोचनाओं को उजागर किया। उन्होंने प्रेमचंद पर ब्राह्मण विरोधी एवं दलित विरोधी आरोपों का खंडन किया और कहा कि प्रेमचंद की विचारधारा किसी बंधन की मोहताज नहीं है। उन्होंने प्रेमचंद को एक्सपोजर के रूप में बतलाया कि वह किस प्रकार पूंजीपतियों के षड्यंत्र को दिखाते हैं। ‘परीक्षा’ कहानी के मूल में शिक्षा के साथ मानवीय गुणों का समावेश है इस विषय पर विस्तृत चर्चा की। साथ ही विमर्श शब्द के मूल एवं इसके उपयोग का मार्ग समझाया। प्रेमचंद के साहित्य को समझने के लिए आर्थिक संवाद का भी बड़ा योगदान है। ‘गोदान’ में किसान की त्रासदी मजदूर वर्ग की त्रासदी के विषय पर चर्चा की। साहित्यकार त्रासदी का पुट व्यक्ति के हृदय में संवेदना को उजागर करने का प्रयास करते हैं। अपने वक्तव्य में उन्होंने यह भी बताया कि परिवर्तन के लिए राजनीति की संस्कृति एक विशेष भूमिका का निर्वाहन करती है। इस प्रकार उन्होंने सारगर्भित एवं महत्वपूर्ण पक्षों को उजागर कर हमें लाभान्वित किया। कार्यक्रम में डॉ. विकास साव ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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