इतिहास के पन्नों में 06 जनवरी : सत्य को जानना चाहिए लेकिन कहना कभी-कभी चाहिए

यह मशहूर लेबनानी लेखक खलील जिब्रान का कथन है। 06 जनवरी 1883 को लेबनान के बथरी नगर के संपन्न परिवार में पैदा हुए खलील जिब्रान मारक सूक्तियों, कहावतों और लघुकथाओं के लिए दुनिया भर में लोकप्रिय हैं।

ईसा के अनुयायी होने के बावजूद जिब्रान अंधविश्वास के कटु आलोचक थे जिसकी वजह से उन्हें पादरियों का कोपभाजन बनना पड़ा और जाति से बहिष्कृत होकर देश निकाला भोगना पड़ा। उनका मशहूर कथन है- महापुरुष वह है जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है।

1926 में उनकी कहावतों की पुस्तक प्रकाशित हुई। अद्भुत कल्पना शक्ति के धनी खलील जिब्रान की रचनाओं का अनुवाद दुनिया भर की 22 से अधिक भाषाओं सहित हिंदी, उर्दू, गुजराती, मराठी में भी हुआ। उर्दू व मराठी में खलील जिब्रान की रचनाओं के सर्वाधिक अनुवाद उपलब्ध हैं। 48 वर्ष की उम्र में 10 अप्रैल 1931 को एक कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होने के कारण उनका निधन हो गया। लेकिन वे आज भी अपनी कहावतों व लघुकथाओं के रूप में जिंदा हैं- यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते।

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