इतिहास के पन्नों में : 19 जनवरी – संभावनाओं से भरी यात्रा का दुखांत

‘न कभी जन्मे, न कभी मरे। वे धरती पर 11 दिसंबर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच आए थे।’- पुणे स्थित ओशो की समाधि पर अंकित शब्द। अपने दौर को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले आध्यात्मिक गुरु आचार्य रजनीश उर्फ ओशो, सर्वाधिक विवादास्पद शख्सियत भी रहे। जीवन को लेकर अन्य महान धर्मगुरुओं से ओशो की दृष्टि अलग थी- जीवन में कोई रहस्य है ही नहीं। या तुम कह सकते हो कि जीवन खुला रहस्य है। सबकुछ उपलब्ध है, कुछ भी छिपा नहीं है। तुम्हारे पास देखने की आंखें भर होनी चाहिये।

19 जनवरी 1990 को सर्द भरी सुबह में ओशो का निधन हो गया। मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में पैदा हुए ओशो का शुरुआती नाम चंद्रमोहन जैन था, जिन्हें बचपन से ही दर्शन शास्त्र में रुचि थी। उन्होंने जबलपुर में पढ़ाई पूरी करने के बाद जबलपुर विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक के तौर पर काम किया।इसी दौरान वे आचार्य रजनीश के रूप में अलग-अलग धर्मों व विचारधाराओं पर अपने विचारों की श्रृंखला शुरू की जो खासा विवादास्पद होने के साथ तर्कपूर्ण भी थी-

‘मनुष्यों के कृत्यों को देखें, तीन हजार वर्षों में पांच हजार युद्ध आदमी ने लड़े हैं। उसकी पूरी कहानी हत्याओं की कहानी है, लोगों को जिंदा जला देने की कहानी है- एक को नहीं हजारों को। और यह कहानी खत्म नहीं हो गयी। दूसरे विश्वयुद्ध में अकेले हिटलर ने साठ लाख लोगों की हत्या की- अकेले आदमी ने। इसको तुम विकास कहोगे। दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने को था, जर्मनी ने हथियार डाल दिये, अमेरिका के राष्ट्रपति ने जापान के ऊपर, हिरोशिमा-नागासाकी में एटम बम गिरवाए। दस मिनट के भीतर दो लाख व्यक्ति राख हो गए। सच तो ये है कि आदमी विकसित नहीं हुआ केवल वृक्षों से नीचे गिर गया है। अब तुम बंदर से भी मुकाबला नहीं कर सकते।’

आगे चलकर उन्होंने नौकरी छोड़ कर नवसंन्यास आंदोलन की शुरूआत की और स्वयं को नया नाम दिया-ओशो। 1981 से 1985 के बीच वे अमेरिका चले गए और वहां ओरेगॉन में 65 हजार एकड़ में आश्रम की स्थापना की। कीमती टोपी, महंगी गाड़ियां, रोल्स रॉयस कारें और डिजाइनर पोशाकों के बीच ओशो के विचारों ने अमेरिकी सरकार को असहज कर दिया।

1985 में अमेरिकी सरकार ने ओशो पर अप्रवास नियमों के उल्लंघन के तहत 35 आरोप लगाए और उन्हें हिरासत में लिया। जिसके बाद 4 लाख अमेरिकी डॉलर का जुर्माना देने और अमेरिका छोड़ने व पांच साल तक वापस न आने की सजा हुई। आरोप तो यहां तक लगाए गए कि अमेरिकी जेल में उन्हें धीमा जहर दिया।

इन्ही परिस्थितियों में ओशो भारत लौट आए और 1986 में उन्होंने जब विश्व भ्रमण की शुरुआत की तो अमेरिकी दबाव के कारण 21 देशों ने या तो उन्हें देश से निष्कासित किया या देश में प्रवेश पर पाबंदी लगा दी। 19 जनवरी 1990 को पुणे स्थित आश्रम में उनका निधन हो गया।

अन्य अहम घटनाएं:

1898: ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मराठी साहित्यकार विष्णु सखाराम खांडेकर का जन्म।

1905: दार्शनिक व धर्म सुधारक देवेंद्रनाथ ठाकुर का निधन।

1935: बांग्ला फिल्मों के सुप्रसिद्ध अभिनेता सौमित्र चटर्जी का जन्म।

1996: जाने-माने साहित्यकार उपेंद्रनाथ अश्क का निधन।

2015ः दिग्गज राजनीति विज्ञानी व लेखक रजनी कोठारी का निधन।

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