कविता संग्रह ‘अन्तस की खुरचन’ पर परिचर्चा एवं वेबसाइट ‘खुदरंग’ का विमोचन

  • अन्तस की खुरचन’ के प्रकाशन की पहली वर्षगांठ पर आयोजित परिचर्चा में डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता, डॉ. वेद रमण, सुधांशु रंजन और डॉ. निशांत ने रखीं अपनी बातें
  • प्रतिष्ठित हिंदी कथाकार अलका सरावगी के हाथों हुआ वेबसाइट ‘खुदरंग’ का लोकार्पण
  • लेखकों-पाठकों और साहित्य-प्रेमियों की मौजूदगी में कोलकाता के रवीन्द्र सदन परिसर स्थित नंदन सभागार में संपन्न हुआ कार्यक्रम

कोलकाता : सुपरिचित कवि यतीश कुमार के पहले कविता संग्रह ‘अन्तस की खुरचन’ के प्रकाशन की पहली वर्षगांठ पर परिचर्चा सत्र का आयोजन रविवार की शाम रवीन्द्र सदन के नंदन सभागार में सम्पन्न हुआ। कविता संग्रह पर परिचर्चा से पहले यतीश कुमार की जिंदगी के विविध रंगों और रचनाकर्म को समेटती वेबसाइट ‘खुदरंग’ का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि एंव गजलकार डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता की अध्यक्षता में हिंदी के प्रतिष्ठित शिक्षाविद डॉ. वेद रमण, वरिष्ठ पत्रकार सुधांशु रंजन और सुपरिचित कवि निशांत ने परिचर्चा में हिस्सा लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत इस काव्य-संग्रह की दो कविताओं के ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति के साथ हुई। यह पूरा कार्यक्रम दिवंगत रंगकर्मी एवं साहित्य-प्रेमी अनन्या दास को समर्पित था। उन्होंने ‘अंतस की खुरचन’ के प्रकाशन से पूर्व ही यतीश कुमार की कविताओं का बांग्ला अनुवाद और पाठ किया था। इस अवसर पर उनका परिवार मौजूद रहा एवं अनन्या दास के पति एवं रेलवे सेवा के वरिष्ठ अधिकारी सूचित्तो दास ने उनकी रचनात्मक स्मृतियां साझा की।

इसके उपरांत वरिष्ठ हिंदी कथाकार अलका सरावगी के हाथों वेबसाइट ‘खुदरंग’ का लोकार्पण हुआ। वेबसाइट लोकार्पण के उपरांत सौम्या पांडेय ने वेबसाइट से संबंधित जानकारी, निर्माण की प्रक्रिया, तकनीक से हिंदी के समन्वय और संभावनाओं पर अपनी बातें कहीं। स्मिता गोयल ने उत्तरीय देकर परिचर्चा-सत्र के वक्ताओं का स्वागत किया।

पुस्तक पर आयोजित परिचर्चा-सत्र में कवि निशांत ने कहा कि कविता का कोंपल है यह संग्रह। आने वाले दिनों में यतीश कुमार कविता की दुनिया में एक बड़े पेड़ की तरह उपस्थित होंगे, यह यहाँ दिखता है क्योंकि कविता में प्रतिबद्धता जो किसी कवि की जड़ों में उपस्थित रहती है, वो यहाँ उपस्थित है। साथ ही साथ प्रेम की उपस्थिति, बिम्बों की सघनता और भाषा की छटा उनकी कविता को विस्तार देती है।

वरिष्ठ पत्रकार व वर्तमान में दूरदर्शन कोलकाता जोन के अपर महानिदेशक सुधांशु रंजन ने कहा कि यतीश कुमार की कविताओं में शहरी जीवन से लेकर लोक जीवन के दुख दर्द की सशक्त अभिव्यक्ति है। शहर की जटिल जिंदगी को जीते हुए भी उनका गहरा जुड़ाव अपनी जड़ों से है। जो उनकी कविताओं में स्पष्ट परिलक्षित होता रहता है।

सुपरिचित आलोचक डॉ. वेद रमण ने कहा कि ‘अंतस की खुरचन’ को जानने के लिए यह भी जानना पड़ेगा कि अन्तःकरण का आयतन कैसा है? वह संक्षिप्त है, वह विस्तृत है, उसमें क्या है और वह अन्तःकरण किससे बना है? उसमें महज संवेदना है या ज्ञान है अथवा ज्ञान और संवेदना दोनों है। इसके सहारे जब आप इस संग्रह से गुजरने की कोशिश करेंगे तो आपको मालूम होगा कि हम जो पुस्तकों से, परम्परा से, संस्कृति से ज्ञान प्राप्त करते हैं, उससे होते हुए यतीश कुमार की कविताएँ हमारी संवेदना तक पहुंचती है, जिसे हम साहित्य की भाषा में ज्ञानात्मक संवेदना भी कहते हैं। कविता में दरअसल शब्द अगर वहाँ चले जाए जहाँ उससे पहले नहीं गए हो तो कविता है।

वरिष्ठ कवि एवं गजलकार डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता ने कहा कि ‘अंतस की खुरचन’ का कवि रूढ़िवादी सोच के विरुद्ध खड़ा है और वैज्ञानिक दर्शन से लैस है। यतीश एक नए आसमान में उड़ान भरते हुए धरती व उसके जनजीवन को नई दृष्टि से देख सकने की क्षमता रखता है, इसी कारण से उनकी कविताओं में नवीनता है।
‘अंतस की खुरचन’ एवं ‘खुदरंग’ वेबसाइट की यात्रा पर यतीश कुमार ने कहा कि खुशनसीब हूँ कि सच्चे और अच्छे दोस्त मेरी ज़िंदगी में शुरू से रहें। इन्हीं दोस्तों ने सकारात्मकता का दीया मेरी ज़िंदगी में जलाए रखा है और उसी के उजास में और कविता के आँगन में मैं उन्मुक्त जी रहा हूँ एवं जिन्होंने अंतस की खुरचन को एक नया आसमान दिया। जिसके लिए शुक्रिया बहुत छोटा शब्द है। नीलांबर परिवार का विशेष शुक्रिया जिसने हर ऐसे दिन को विशेष बनाने में कोई कसर नहीं रखी। पूर्व और आज के वक्ताओं ने जो राह इस किताब को और मुझे दिखाई है उस पर चलने की पूरी कोशिश करूँगा।

वक्ताओं के संबोधन उपरांत क्रमश: लेखिका निर्मला तोदी ने निशांत, अलका सरावगी ने सुधांशु रंजन, अल्पना नायक ने डॉ. वेद रमण एवं डॉ. आशुतोष ने डॉ. वेद प्रकाश गुप्ता को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। यतीश कुमार के वक्तव्य एवं धन्यवाद ज्ञापन से ही सत्र का समापन हुआ। पूरे कार्यक्रम का संचालन टेलीविजन की लोकप्रिय उद्घोषक चयनिका दत्ता गुप्ता ने किया। समारोह में शहर के साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति ने परिचर्चा-सत्र को जीवंत बनाया।

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