17 अगस्त 1961 को पूर्वी जर्मनी की सरकार ने बर्लिन की उस दीवार का काम पूरा कर लिया, जो तीन दिनों पहले 13 से 14 अगस्त 1961 को रातोंरात खड़ी की गई थी। दीवार खड़ी करने के लिए पूर्वी जर्मनी की सरकार ने अपने पीपल्स नेशनल आर्मी के हजारों सैनिक पूर्वी व पश्चिम बर्लिन के बीच सीमा पर तैनात कर दिए। 155 किलोमीटर की यह दीवार खड़ी करने के बाद उस पर कंटीले तार लगाने का काम 17 अगस्त को पूरा हो गया।

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1961 में बर्लिन दीवार का निर्माण पूर्वी जर्मनी की सरकार ने किया। जिसका मकसद था- पूर्वी जर्मनी से भाग कर पश्चिमी जर्मनी जाने वाले लोगों को रोकना। दरअसल, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी दो हिस्सों में बंट गया- पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी। पूर्वी जर्मनी समाजवादी था जहां शिक्षा मुफ्त थी। जबकि पश्चिमी जर्मनी पूंजीवादी। इसलिए पूर्वी जर्मनी में मुफ्त शिक्षा पाकर बड़ी संख्या में लोग पश्चिमी जर्मनी जा रहे थे। जिसमें प्रोफेसर, अध्यापक, तकनीकी विशेषज्ञ, डॉक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी और कामगार शामिल थे।

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इस प्रतिभा पलायन से पूर्वी जर्मनी को काफी नुकसान पहुंच रहा था। जिसके बाद जर्मनी के नेता वाल्टर उल्ब्रिख्त ने बर्लिन की दीवार की परिकल्पना रखी जिसे सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने मंजूर कर लिया। इसे पूरे अभियान को ऑपरेशन पिंक का नाम दिया गया।

करीब 28 साल तक बर्लिन शहर को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में तोड़ कर रखा गया। सोवियत संघ के बिखराव के बाद 09 नवंबर 1989 को यह दीवार गिरा दी गई। आज भी बर्लिन की दीवार के कुछ हिस्से अस्तित्व में हैं जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में दुनिया भर के पर्यटक पहुंचते हैं।

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