कोलकाता : रविशंकर उपाध्याय स्मृति संस्थान एवं सटरडे पोइट्री के संयुक्त तत्वावधान में कवि सुनील कुमार शर्मा के पहले काव्य संग्रह ‘’हद या अनहद” का लोकार्पण रवीन्द्र सदन के चारुकला भवन में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य एवं भोजपुरी अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल उपस्थित रहे।

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कार्यक्रम की अध्यक्षता पश्चिम बंगाल राज्य विश्वविद्यालय के प्रो. अरुण होता ने की। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एवं साहित्यकार मृत्युंजय कुमार सिंह एवं ब्रेथवेट के सीएमडी, रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी एवं चर्चित कवि यतीश कुमार की मौजूदगी रही। कार्यक्रम के पहले सत्र में काव्य संग्रह का लोकार्पण करते हुए मुख्य अतिथि प्रो. शुक्ल ने कविताओं के विषय में कहा कि सुनील अंतस के आलोक के कवि हैं, इनके यहाँ मौन मुखरता में रूपांतरित हुआ है, ये अंतरंग की उम्मीद के कवि हैं। कार्यक्रम की शुरुआत में वक्तव्य रखते हुए कवि सुनील ने कहा कि निष्पक्ष अपना आकलन वैसे तो बहुत ही दुरूह कार्य है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है – यह संग्रह शायद ‘’हद और अनहद’’ दोनों ही गतियों का दस्तावेज है जिसमें मेरी आपबीती भी है, जगबीती भी।

साहित्यकार मृत्यंजय कुमार सिंह ने संग्रह पर अपनी बात रखते हुए कहा कि सुनील की कविता वैचारिक बात कहते-कहते लय ढूँढ लेती है, कविताई इनकी कविता की प्रमुख विशेषता है। कवि यतीश कुमार ने संग्रह का विश्लेषण करते हुए उसे अपने समय का महत्वपूर्ण संग्रह बताया। उन्होंने कहा कि इनके संग्रह में जीवन-मुखी कविताएं हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ आलोचक प्रो. अरुण होता ने सुनील को बदलती जीवन स्थितियों को उकेरने वाला कवि बताया। उन्होंने कहा कि इनकी कविताओं से समकालीन कविता का आयतन व्यापक हो रहा है। प्रथम सत्र का संचालन कार्यक्रम के संयोजक आदित्य विक्रम सिंह द्वारा किया गया ।

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य पाठ का आयोजन देश के प्रख्यात कवि श्रीप्रकाश शुक्ल की अध्यक्षता में किया गया। कविता पाठ में युवा कवियों के साथ साथ वरिष्ठ कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया । काव्य पाठ में शामिल कवियों में विजय कुमार, निशांत, विमलेश त्रिपाठी, सुनील कुमार शर्मा, यतीश कुमार, मृत्युंजय कुमार सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपनी कविताओं का वाचन किया। कार्यक्रम में कोलकाता के साहित्य प्रेमियों की भीड़ रही।

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